मैं जो भी लिखूँ स्वछंद लिखूँ
बस एक ही सपना मेरा मै,
जो भी लिखूं हो स्वछन्द लिखूँ,
साफ लिखूं सटीक लिखूं
होकर दुनियाँ से निर्भीक लिखूँ,
न होकर किसी की पाबन्द लिखूँ,।
सबके मन को भा जाये,
सबको ही रस आ जाये,
कुछ ऐसा अनुपम छंद लिखूँ।
ज्यादा कुछ न बड़ा लिखूँ,
सीमित शब्द में बात कहूँ,
समझ जाये सब चाहें लाइने चन्द लिखूँ।
रहे सदा कलम में स्याही मान की,
में बात लिखूँ अभिमान की,
न बनके कभी जयचन्द लिखूँ।
जो भी पढ़े बस खो जाये,
चंद छणों के लिए उसी का हो जाये,
चाहें खुशी लिखूँ या रंज लिखूँ।
सारी दुनियाँ की चाहत लिख दूँ,
प्रेम और आसक्ति लिख दूँ,
जी करता अपनी भी थोड़ी पसन्द लिखूँ।
सारे तीस त्योहार लिखूँ,,
स्त्री के सब श्रंगार लिखूँ,
साबन की बौछार,राग मल्हार संग लिखूँ।
हो रहे जो वो अत्याचार लिखूँ,,
नारी उद्धार का मार्ग लिखूँ,
पुरुषों के मन मे छुपी पीड़ा का प्रतिबिंब लिखूँ,।
है जब तक श्वांस कलम न ठहरे,
कभी राम का रामराज्य लिखूँ,
कहीं शिवजी का विध्वंस लिखूँ।
कभी नयनों के अश्क लिखूँ,
कभी खुशियों के समक्ष लिखुँ,
कभी नवयौवना की उमंग लिखूँ।
कभी प्रिय के मन का क्रोध लिखुँ
कभी प्रियतमा का विछोह लिखुँ,
कभी दोनों के मिलन का आनन्द लिखुँ।
कभी प्रकृति का रूप अनूप लिखुँ,
कहीं मानवता हो रही कुरूप लिखुँ,
कहीं चहकते पक्षी का स्पंद लिखुँ।
कभी प्रिय मिलन की आस लिखुँ,
कभी, जुदाई का एहसास लिखुँ,
प्रेम से जो हुआ प्रकट, वो सारा मकरन्द लिखुँ।
न कभी किसी से डरके लिखुँ,
न आहें भरके लिखुँ,
करके सदा ही अपने हौसले बुलंद लिखुँ।
कोयल की कूक लिखुँ,
छाँव औऱ धूप लिखुँ,
कभी कुछ संग संग लिखुँ।
कभी गीता का ज्ञान लिखुँ,
कभी रामायण के राम लिखुँ,
कभी बृन्दावन के कुंज लिखुँ।
अन्जू दीक्षित,
बदायूँ,
उत्तर प्रदेश।
Adeeba Riyaz
16-Aug-2021 01:44 PM
👍💫
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